जब इस्लाम अपने शुरूवाती दिनों में था, और मोहम्मद साहब मदीना आ गए थे, तब मदीना में मुख्यत 3 यहूदी कबीले रहा करते थे, बनू कूनेका, बनू नजीर और बनू कुरेज़ा, जब मोहम्मद साहब मदीना आ गए और अपने सहबियो के साथ लूटपाट मचाने लगे तो इन यहूदी कबीलों ने उनसे संधि करना मुनासिब समझा और एक शांति संधि कर ली, जिसमे मुहम्मद साहब उनके कबीलों को नही लूटेंगे, मोहम्मद साहब को शुरुवात में लगा की, चूंकि यहुदियों ने बहुत से बाइबलीक पैगंबरों को अपना लिया था, और यहूदी बहुदेववादी नही थे इसलिए वे इस्लाम में दिलचस्पी दिखाएंगे, और इसी कारण से मोहम्मद साहब ने अपनी इबादतों में जेरूशलम को किबला के रूप में स्वीकार किया था, ताकि यहुदियों के विश्वास को ही बुनियाद बनाया जा सके, पर मोहम्मद साहब को निराशा हाथ लगी और मक्का के कुरैश कबीले की तरह यहुदियों ने भी इस्लाम में दिलचस्पी नहीं दिखाई, उनका विश्वास उनके पूर्वजों के विश्वास में दृढ़ रहा। [1]
The life of muhmmad by ibn ishaq, page number 363
रसूल ने उन्हें, उनके बाजार में इक्ट्ठा किया, और इस प्रकार कहा " ओ यहुदियों, सावधान, मुस्लिम बन जाओ, वरना ऐसा न हो की खुदा तुम पर वह प्रतिशोध लाए जो वह कुरेश पर लाया, तुम जानते हो की मैं पैगंबर हु जिसे भेजा गया है, तुम इसे अपनी किताबो मे और अपने खुदा की वाणियो में इसे पाओगे"
यहुदियों ने जवाब दिया " ओ मुहम्मद, तुम्हे लगता है की हम तुम्हारे लोग है, खुद को धोखा मत दो, तुमने उन लोगो का सामना किया है, जिन्हे जंग का कोई ज्ञान नहीं, और इसलिए तुम उनसे बेहतर हो गए, यदि परमेश्वर की ओर से हम तुमसे लड़े तो तुम पाओगे की हम सच्चे मर्द है।
यह बात मोहम्मद साहब को नागवार गुजरी और उनके सब्र का बांध टूट गया, फिर मोहम्मद साहब ने यहुदियों के लिए कुछ आयते भी उतारी
कुरान 7:166
कुरान 5:60
मदीना की तरफ आने वाले करवा को लूटने से मोहम्मद साहब दिन ब दिन ताकतवर हो रहे रहे थे, और अब वो मौका ढूंढ रहे थे की कैसे यहुदियों का सफाया किया जाए, इन्हे यह मौका बनू कुनेका कबीले के एक व्यक्ति ने दे दिया,
जब नए नए मोमिनों और यहुदियों में एक झड़प हो गई, यहुदियों के एक व्यक्ति ने मजाक में बाजार में गहने खरीद रही एक मुस्लिम महिला के जमीन पर फैले कपड़े के हिस्से पर किल ठोक दी, जब वह महिला उठी तो उसके कपड़े कुछ फट गए, मोहम्मद साहब और उनके सहाबियो में यहुदियों के प्रति नफरत पहले ही भर चुकी थी इसलिए जब एक मुस्लिम व्यक्ति ने उसे देखा तो उसने तुरंत उस आदमी को वही मार दिया, उसके बाद उस व्यक्ति के रिश्तेदारों ने उस मुस्लिम को मार दिया,
मोहम्मद साहब ऐसे ही मौके की ताक में थे, जब मोहम्मद साहब को यह बात पता चली, तो उन्होंने इसे शांत करवाने के बजाय, सारे के सारे यहुदियों को इसका जिम्मेदार ठहरा दिया,
स्वयं से प्रश्न करिए क्या यही हरकत मोमिन आज नही करते जब किसी मूर्ख काफिर द्वारा कुछ गलत कर देने पर, वो पूरे समुदाय को दोषी ठहराते है। एक तरफ वो कहते है की एक इंसान से मजहब को नही आका जाना चाहिए और दूसरी तरफ वो खुद ऐसा करते है।
और यहुदियों को प्रस्ताव दिया की या तो वो इस्लाम कबुल करे या जंग का सामना करे, बनू कुनेका कबीले के लोगो ने इसे अनसुना कर दिया और अपने अपने घर आ गए, जब यहुदियों ने मोहम्मद साहब की धमकी को अनसुना कर दिया तो, मोहम्मद साहब ने बनू कुनेका कबीले पर हमला कर दिया और उन्हे चारो ओर से घेर कर उनके पानी की सप्लाई को काट दिया, और उन्हे धमकी दी।
दो सप्ताह बाद, बनू कुनेका कबीले के लोगो ने बिना किसी शर्त के सरेंडर करने की सिफारिश की पर मोहम्मद साहब नही माने, क्योंकि वो तो उन्हे खत्म करने की कसम खाए बैठे थे, पर वो ऐसा कर नही पाए क्योंकि, बनू कुनेका कबीले के, अरब के ही एक दूसरे ताकतवर कबीले खजरज से बेहतरीन संबंध थे, फिर …
The life of muhmmad by ibn ishaq, page number 363
और रसूल ने उन्हें तब तक घेरे रखा जब तक उन्होंने बिना शर्त आत्मसमर्पण नही कर दिया, अब्दुल्ला बिन उबय मोहम्मद के पास आए जब खुदा ने उन्हें उसकी ताकत के आगे झुका दिया, और उसने मोहम्मद से कहा "ओ मुहम्मद, मेरे लोगो से नरमी से पेश आओ, (तब खजरज कबीला बनू कुनेका का सहयोगी था ) पर रसूल ने उसे पीछे धकेल दिया, उसने फिर दोहराया, पर वह मुंह फेरकर चले जाने लगे, जिसपर अब्दुल्ला ने रसूल की कोलर पकड़ ली, इससे रसूल को बहुत गुस्सा आया इतना की उसका चेहरा गुस्से से काला हो गया, रसूल ने कहा, "भाड़ में जाओ, मुझे जाने दो" अब्दुल्ला ने कहा, नही, खुदा के लिए मैं तुम्हे तब तक नही जाने दूंगा जब तक तुम मेरे लोगो के साथ नाइंसाफी करना बंद न कर दो, ये वो लोग है, जिसमे से 400 लोग बिना असलहे और 300 हथियार बंद आदमी दुश्मनों से मेरे साथ लड़ने में साथ दे रहे थे, क्या तुम इन सबको एक ही दिन में काट डालोगे, खुदा के लिए, मैं वो इंसान हु जो जानता है की हालात बदल सकते है, इस पर रसूल ने कहा "अपने आदमियों को अपने पास रखो"
Ishaq आगे लिखता है की, मोहम्मद साहब ने अपने आदमियों से कहा उन्हे जाने दो, अल्लाह सजा देगा, अब्दुल्ला को भी और उन्हे भी, तो इस प्रकार
मोहम्मद साहब बनू कुनेका कबीले के लोगो को, न मारने के लिए राजी तो हो गए पर उन्होंने उनके सामने शर्त रखी कि वो अपना सारा सामान और जमीन छोड़कर मदीना से चले जाए, और बनू कुनेका कबीले के लोग अपना सारा सामान, घर बार और जमीन छोड़कर चले गए, कुछ इस्लामिक इतिहास कारों का मानना है की वो कुछ दिन सीरिया रुके और फिर यह कबीला हमेशा के लिए गायब या समाप्त हो गया।
जैसा की हर इस्लामिक इतिहास कार करता है, आप देख सकते है की उन्होंने हर चीज चासनी में घोलकर प्रस्तुत की पर वह मछली की दुर्गन्ध नही मिटा सके, पर इससे आप अनुमान लगा सकते है की, वास्तविकता में क्या हुआ होगा, हा एक और बात बनू कुनेका बहुत समृद्ध और खुशहाल कबीला था। और उसके लोग व्यापारी थे। इस कबीले के लोग जंग के लिए हमेशा अरबियो पर निर्भर रहते थे, जिन्हे मोहम्मद साहब ने हूर और लौंडियों का लालच देकर पहले ही अपनी तरफ कर चुके थे। इसलिए जब मोहम्मद साहब ने हमला किया तो युद्ध के बजाय उन्होंने सरेंडर कर दिया।
इतिहास खुद को दोहराता है।
उस वक्त मदीना में दो और यहूदी कबीले बनू नजीर और बनू कुरेजा थे, वो चाहते तो बनू कुनेका की मदद कर सकते थे, और शायद वो तीनो मिलकर उन्हें मिटा भी सकते थे, पर इन दोनो कबीलों ने क्या किया जानते है… अपना स्वार्थ देखा और मोहम्मद साहब को राजी करने में लग गए, ताकि वो उनके साथ ऐसा न कर दे, और जानते है सबसे बुरा अंजाम किसका हुआ, बनू कुरेजा का, जब उसके 900 लोगो को मोहम्मद साहब ने एक ही दिन में कटवा दिया, और उनकी महिलाएं और बच्चे, लौंडिया (सेक्स स्लेव) और गुलाम बना दिए गए, बनू कुनेका को सिर्फ भागना पड़ा, पर वो जो दूसरो पर हो रहे अन्याय को देखते रहे, उनका अंजाम बनू कुनेका से बहुत बहुत बुरा हुआ…
क्या आपने वो लाइन सुनी है, यदि आप इतिहास से सबक नही लेते तो इतिहास खुद को दोहराता है, कम से कम इस्लाम पढ़ने और उसके बाद की हिस्ट्री को समझने के बाद मेरा इस कथन में विश्वास दृढ़ हुआ है।
देखिये एक सच्चे मोमिन के लिए मोहम्मद हीरो है, वो बस मोहम्मद को फॉलो कर रहे है, वो सिर्फ वही कर रहे है जो मोहम्मद ने किया था, इसलिए बाद में हुए पलायनों का कुछ आश्चर्य नहीं है, हमे देखना चाहिए, यही सब ईरान में हुआ था, जब पारसियों को अपने ही देश से भगा दिया गया था, उनके पलायन का और कोई भी कारण नही है, इस्लाम इसी तरह से काम करता है।
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