जब तक मुस्लिम संख्या में बहुत कम होते है तो वे बड़े प्रेम और भाईचारे की बात करते है, पर जब इस्लाम किसी देश में थोड़ा ताकतवर हो जाता है, वो एक दम आक्रामक हो जाते है, जैसे की ईरान में जब मुस्लिम आये तो वे बहुत कम थे पर जब ईरान में मुस्लिमो की तादाद बढ़ गई तो पारसियों को अपने ही देश को छोड़कर भारत में शरण लेनी पड़ी, उसी तरह मुस्लिम कश्मीर में शरणार्थी बनकर आए पर फिर जैसे ही उनकी ताकत बढ़ी उन्होंने हिन्दुओ का ही नरसंहार शुरू कर दिया, और 1991 में ये अंतिम व 7 वे चरण के रूप में समाप्त हो गया, जब कश्मीरी पंडित कश्मीर से पलायित होने को मजबूर हो गए, यदि ताजा उदहारण ले, अभी स्वीडन में मुस्लिम शरणार्थियो के कारण मुस्लिमो की आबादी में अचानक वृद्धि हुई, और इसी वृद्धि के साथ स्वीडन जैसे विश्व के सबसे खुशहाल और शांति प्रिय देश में दंगे हुए और एक रिपोर्ट बताती है की स्वीडन दुनिया के सबसे सुरक्षित देशो में से, यूरोप में गन क्राइम में दूसरे नंबर पर पहुंच गया,
ज्यादा जानकारी के लिए यह पढ़े किसी देश का इस्लामीकरण किस तरह होता है ?
पर ऐसा कैसे होता है, यदि आपको ये जानना हो की इस्लाम कैसे काम करता है, तो आपको ये समझना होगा की पैगम्बर मुहम्मद का चरित्र कैसा था, जब मुहम्मद कमजोर था और उसके बहुत कम अनुयायी थे तब वह बड़ा अच्छा, शिष्ट, दयालु लचीला और विनम्र बनने का नाटक करता था, इसलिए कुरान की उन आयतो में जो तब लिखी गयी जब मुहम्मद मक्का में थे, और वो जो तब लिखी गई जब मुहम्मद मदीना में थे और ताकतवर हो गये थे, के मध्य बहुत विरोधाभास है, क्योंकि तब उन्हें लोगो को बदलने के लिए भलाई का मुखौटा पहनने की जरुरत नहीं रह गयी थी, वो लोगो पर हमला करता और जो नहीं मानता उसका क़त्ल कर दिया जाता, चलिए मक्का में लिखी गई कुछ आयतो पर नजर डालते है,
कुरान 73 : 10
और सहन करें उन बातों को, जो वे बना रहे हैं और अलग हो जायें उनसे सुशीलता के साथ (10)
कुरान 109 : 6
तुम्हारे लिए तम्हारा दीन तथा मेरे लिए मेरा दीन है (6)
कुरान 20 : 130
अतः जो कुछ वे कहते हैं उसपर धैर्य से काम लो और अपने रब का गुणगान करो, सूर्योदय से पहले और उसके डूबने से पहले, और रात की घड़ियों में भी तसबीह करो, और दिन के किनारों पर भी, ताकि तुम राज़ी हो जाओ। (103)
कुरान 50 : 39
तो आप सहन करें उनकी बातों को तथा पवित्रता का वर्णन करें अपने पालनहार की प्रशंसा के साथ, सूर्य के निकलने से पहले तथा डूबने से पहले।
कुरान 50 : 45
तथा हम भली-भाँति जानते हैं उसे, जो कुछ वे कर रहे हैं और आप उन्हें बलपूर्वक मनवाने के लिए नहीं हैं। तो आप शिक्षा दें क़ुर्आन द्वारा उसे, जो डरता हो मेरी यातना से।
कुरान 7 : 199
(हे नबी!) आप क्षमा से काम लें, सदाचार का आदेश दें तथा अज्ञानियों की ओर ध्यान न दें।
कुरान 15 : 85
और हमने आकाशों तथा धरती को और जो कुछ उन दोनों के बीच है, सत्य के आधार पर ही उत्पन्न किया है और निश्चय प्रलय आनी है। अतः (हे नबी!) आप (उन्हें) भले तौर पर क्षमा कर दें।
कुरान 45 :14
(हे नबी!) आप उनसे कह दें जो ईमान लाये हैं कि क्षमा कर दें उन्हें, जो आशा नहीं रखते हैं अल्लाह के दिनों की, ताकि वह बदला दे एक समुदाय को उनकी कमाई का।
कुरान 2 : 62
वस्तुतः, जो ईमान लाये तथा जो यहूदी हुए और नसारा (ईसाई) तथा साबी, जो भी अल्लाह तथा अन्तिम दिन (प्रलय) पर ईमान लायेगा और सत्कर्म करेगा, उनका प्रतिफल उनके पालनहार के पास है और उन्हें कोई डर नहीं होगा और न ही वे उदासीन होंगे।
कुरान 29 : 46
और तुम वाद-विवाद न करो अह्ले किताब से, परन्तु ऐसी विधि से, जो सर्वोत्तम हो, उनके सिवा, जिन्होंने अत्याचार किया है उनमें से तथा तुम कहो कि हम ईमान लाये उसपर, जो हमारी ओर उतारा गया और उतारा गया तुम्हारी ओर तथा हमारा पूज्य और तुम्हारा पूज्य एक ही है और हम उसी के आज्ञाकारी हैं।
अब इन आयतो की तुलना उन आयतो से करते है, जो मुहम्मद ने तब दी जब वह ताकतवर हो गया था,
कुरान 9 : 123
हे ईमान वलो! अपने आस-पास के काफ़िरों से युध्द करो और चाहिए कि वे तुममें कुटिलता पायें तथा विश्वास रखो कि अल्लाह आज्ञाकारियों के साथ है।
कुरान 8 : 12
(हे नबी!) ये वो समय था, जब आपका पालनहार फ़रिश्तों को संकेत कर रहा था कि मैं तुम्हारे साथ हूँ। तुम ईमान वालों को स्थिर रखो, मैं कीफ़िरों के दिलों में भय डाल दूँगा। तो (हे मुसलमानों!) तुम उनकी गरदनों पर तथा पोर-पोर पर आघात पहुँचाओ।
कुरान 3 : 85
और जो भी इस्लाम के सिवा (किसी और धर्म) को चाहेगा, तो उसे उससे कदापि स्वीकार नहीं किया जायेगा और वे प्रलोक में क्षतिग्रस्तों में होगा।
कुरान 9 : 5
फिर, जब हराम (प्रतिष्ठित) महीने बीत जाएँ तो मुशरिकों को जहाँ कहीं पाओ क़त्ल करो, उन्हें पकड़ो और उन्हें घेरो और हर घात की जगह उनकी ताक में बैठो। फिर यदि वे तौबा कर लें और नमाज़ क़ायम करें और ज़कात दें तो उनका मार्ग छोड़ दो, निश्चय ही अल्लाह बड़ा क्षमाशील, दयावान है। (5)
कुरान 2 : 191
और जहाँ कहीं उनपर क़ाबू पाओ, क़त्ल करो और उन्हें निकालो जहाँ से उन्होंने तुम्हें निकाला है, इसलिए कि फ़ितना (उपद्रव) क़त्ल से भी बढ़कर गम्भीर है। लेकिन मस्जिदे-हराम (काबा) के निकट तुम उनसे न लड़ो जब तक कि वे स्वयं तुमसे वहाँ युद्ध न करें। अतः यदि वे तुमसे युद्ध करें तो उन्हें क़त्ल करो - ऐसे इनकारियों का ऐसा ही बदला है।(191)
कुरान 8 : 39
उनसे युद्ध करो, यहाँ तक कि फ़ितना बाक़ी न रहे और दीन (धर्म) पूरा का पूरा अल्लाह ही के लिए हो जाए। फिर यदि वे बाज़ आ जाएँ तो अल्लाह उनके कर्म को देख रहा है। (39)
कुरान 9 : 14
उनसे लड़ो। अल्लाह तुम्हारे हाथों से उन्हें यातना देगा और उन्हें अपमानित करेगा और उनके मुक़ाबले में वह तुम्हारी सहायता करेगा। और ईमानवाले लोगों के दिलों का दुखमोचन करेगा (14)
कुरान 9 : 66
बहाने न बनाओ, तुमने अपने ईमान के पश्चात इनकार किया। यदि हम तुम्हारे कुछ लोगों को क्षमा भी कर दें तो भी कुछ लोगों को यातना देकर ही रहेंगे, क्योंकि वे अपराधी हैं।" (66)
कुरान 9 : 28
ऐ ईमान लानेवालो! मुशरिक तो बस अपवित्र ही हैं। अतः इस वर्ष के पश्चात वे मस्जिदे-हराम के पास न आएँ। और यदि तुम्हें निर्धनता का भय हो तो आगे यदि अल्लाह चाहेगा तो तुम्हें अपने अनुग्रह से समृद्ध कर देगा। निश्चय ही अल्लाह सब कुछ जाननेवाला, अत्यन्त तत्वदर्शी है।(28)
कुरान 9 : 29
वे किताबवाले जो न अल्लाह पर ईमान रखते हैं और न अन्तिम दिन पर और न अल्लाह और उसके रसूल के हराम ठहराए हुए को हराम ठहराते हैं और न सत्यधर्म का अनुपालन करते हैं, उनसे लड़ो, यहाँ तक कि वे सत्ता से विलग होकर और छोटे (अधीनस्थ) बनकर जिज़्या देने लगें। (29)
यह इस बात का ठोस सबूत है की जैसे ही मुहम्मद के पास ताकत आई वह बिलकुल बदल गया, जब वह मक्का में कमजोर था तो बड़ा शिष्ट दयालु और संवेदनशील बनने का नाटक किया करता था, पर जैसे ही उसके पास ताकत आई वह रौब ज़माने वाला, क्रूर, रुखा और आततायी बन गया।
इन विरोधाभासी आयतो के कारण ही इस्लाम में मनसुख आयतों का चलन आया, जब कुरान की दो आयते एक दूसरे से टकरा रही हो, तो एक आयत को निरस्त कर दिया जाता है, इसे ही मनसुख आयत कहते है, और रोचक बात तो ये है की अधिकतर इन भाईचारे वाली आयतो को ही मनसुख करार दे दिया जाता है।